चुपके-चुपके रात दिन फेसबुक पे जाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
दोपहर की पोस्ट हो या हो आधी रात की
वो तेरा हर पोस्ट को लाईक करना याद है
दोस्तों की पोस्ट में था तेरा चेहरा ढूँढता
वो हर किसी ऐरे-गैरे को दोस्त बनाना याद है
हो बुरा, हो घोर बुरा, केम्ब्रिज एनालिटिका के स्टॉफ का
जिसने किया तहस-नहस, किया सब बर्बाद है
आओ चलो फेसबुक छोड़े, पकड़े व्हाट्सैप का हाथ हम
कब, कहाँ, कोई, किसीका देता आजन्म साथ है
(हसरत मोहानी से क्षमायाचना सहित)
17 अप्रैल 2018
सिएटल
1 comments:
व्हाट्सएप्प छाया है अभी तो
बहुत खूब!
Post a Comment