Wednesday, October 11, 2023

एक फूल की चाह

एक फूल की चाह को

कैसे मैं नकार दूँ 

पल रहे जो ख़ार से

उनको क्यूँ बिसार दूँ


जो भी राग-द्वेष हैं

हो रहे जो क्लेश है

ये सृष्टि के बीज हैं

बनते इनसे देश है


न युद्ध हो, न कमान हो

गीता का फिर क्यों ज्ञान हो 


न पाप हो, संहार हो

पैदा क्यों अवतार हो


बढ़ रहे मसअलों से

बढ़ रहा विकास है

एक जैसी सोच से

कब हुआ विकास है


ये काँपतीं ये टोलियाँ 

ये चीखती ये गोलियाँ 

सब उचित कहलाएँगी

सब विस्मृत हो जाएँगी 

जब ध्वज नया कोई लहराएगा 

जब राष्ट्रगीत एक बन जाएगा 


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2023 । सिंगापुर 










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