तुम गई थी मुझको छोड़ के
सवेरे गली के जिस मोड़ पे
उस मोड़ की मैं पूजा करूँगा
उसी को मैं अपना मंदिर कहूँगा
वादे का कोई औचित्य नहीं था
वादे की कोई दरकार नहीं थी
वादा किसी ने माँगा नहीं था
वादा तुम्हें देना नहीं था
फिर भी तुमने वादा किया है
चंद घंटों को जीवन दान दिया है
कि आती हूँ मैं फिर दो बजे तक
उसके आगे कुछ सुना नहीं था
उसके आगे कुछ सुनना नहीं था
यही थे मेरे अठारह अध्याय
यही थे मेरे सप्त सोपान
बिन माँगे मोती मिले हैं
मुझ जैसे के भाग खुले हैं
दूर सघन परदेस में भी
दिल से दिल के तार जुड़े है
राहुल उपाध्याय । 26 अक्टूबर 2023 । लंगकावी (मलेशिया)
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