जितने रंग क्लोथ्सपिन में हैं
उतने जीवन में नहीं
जो लगाती है इन्हें
ध्यान से
कि कोई गिरे न कहीं
समझती है कि एक दिन
छूटेगी इस कारावास से
अर्जित बंधक आवास से
और गर्व से उठाएगी अपना वो सर
जो आज दिन भर करती रहती है - सर, सर, सर
छूटेगी तो खोएगी भी
एक दिनचर्या
एक नन्हा रिश्ता
जिसे उसने पाला
छूटेगी तो खोएगी भी
एक दुनिया
जिसमें वह नौकरानी होते हुए भी
मालकिन है
कोई ताने नहीं मारता है
कोई अनकही अपेक्षाएँ नहीं रखता है
हर काम का पूरा पेमेंट मिलता है
कोई हिसाब न अधूरा रहता है
हर रोज़ किसी से न होती है जंग
कोई डाँटता, न डपटता, न लड़ता है उससे
सुकून से सोती है
जगती है रोज़
छूटेगी तो खोएगी भी
वह आराम जिसमें
किसी से कोई अपेक्षा नहीं है
कि कोई चाय बना के पिलाएगा
कि कोई चाय का पूछेगा
कि कोई घूमाने कहीं ले जाएगा
ये कारावास है
कि अप्रत्याशित सुख?
क्यूँ निकलना है यहाँ से
क्यूँ बनाना है ख़ुद का परिवार
क्यूँ बढ़ानी हैं खुद की दिक़्क़तें
क्यूँ भरने हैं जीवन में रंग
जो एक दिन हल्के हो ही जाएँगे
राहुल उपाध्याय । 3 अक्टूबर 2023 । सिंगापुर
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