Monday, October 30, 2023

हर शहर में एक ऐसा शहर है

हर शहर में एक ऐसा शहर है

जो सफ़र में बन के रहा हमसफ़र है

मिलता है मुझसे 

पहचानता है मुझको 

मेरी ही आवाज़ में 

बुलाता है मुझको

सुनता है मेरी

सुनाता है अपनी

खिला के मुझे

भूख मिटाता है अपनी

जानता है वो 

मैं यहाँ रूकूँगा नहीं 

गले से लगाके

उसे रखूँगा नहीं 

और यही एक बात

उसे खींच लाती है मुझ तक

वरना हज़ारों हैं लोकल 

जो कर सकते हैं प्यार 

मुझसे भी ज़्यादा 

पर परदेसी की नज़र 

है ऐसी दीगर 

कि पीपल हो

पनघट हो

कुत्ता हो कोई 

नदी हो

दरिया हो

मंदिर हो कोई 

सुबह हो

शाम हो

पहर हो कोई 

खेत हो

खलिहान हो

बंजर हो कोई 

हूर हो

परी हो

साधारण हो कोई 

हर एक पे कैमरा 

निकलता है ऐसे

कि यही है ताजमहल 

यही अजन्ता 

जितना भी देखूँ

पेट नहीं भरता

कल जाना है मुझको 

कैसे समेटूँ हुस्न ये सारा

फिर आना है एक दिन 

लेकिन आऊँगा नहीं 

न जाने कितने पनघट अभी

और निहारने हैं बाक़ी 


राहुल उपाध्याय । 30 अक्टूबर 2023 । क्राबी (थाइलैंड)

(क्राबी छोड़ने की पूर्व संध्या पर)

https://mere--words.blogspot.com/2023/10/blog-post_30.html?m=1




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