Wednesday, December 18, 2024

सोया हूँ जबसे

सोया हूँ जबसे बाँहों में

सोया नहीं हूँ मैं तबसे

चैतन्य हूँ, मैं जागृत हूँ 

अमृत पिया है मैंने


ये दुनिया कितनी अजीब है 

कोई आता है, कोई जाता है 

घर कहते हैं हम जिसको

कोई सराय हो जैसे


मैं तनहा हूँ, परिशां हूँ 

या प्यार का कोई मारा हूँ 

कहने वाले कहते हैं 

सच कहूँ मैं किससे 


तुम जैसी हो मैं वैसा हूँ 

हालात हमारे हैं इक से 

खून ख़राबा तो होता है 

जब दिल से दिल हैं मिलते


क्या ग़लत हुआ, क्या सही हुआ 

ये सोचूँ इतना वक़्त नहीं 

चार दिन की ज़िन्दगी 

जी रहा हूँ कब से


राहुल उपाध्याय। 18 दिसम्बर 2024 । सिएटल 


Tuesday, December 17, 2024

मेरे दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं

तुम किसे हैप्पी बर्थडे कहती हो

और किसे हैप्पी दीवाली

मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता 


मेरे दुश्मन 

तुम्हारे दोस्त हैं

तो हैं

मैं क्या करूँ?


तुम

किसके यहाँ जाती हो

क्या खाती हो

क्या पीती हो

कब जाती हो

कब आती हो

किस जोक पर हँसती हो

मुझे कोई सरोकार नहीं 


सरोकार है तो बस इससे

कि तुम अब भी मेरी कविताओं में हो

सारा ज़माना हमें जानता है

और तुम्हारे बारे में मुझसे पूछता है 


तुम दूर हो कर भी

मेरे साथ हो

और रहोगी 


राहुल उपाध्याय। 17 दिसम्बर  2024 । सिएटल 






Monday, December 16, 2024

आशिक़ थे, आश्ना हो गए

आशिक़ थे, आश्ना हो गए

दिल से दिल जुदा हो गए 


लड़ते-झगड़ते अच्छे थे हम

मीठे बोल अब सज़ा हो गए


न ज़ाकिर से वास्ता, न गुकेश से मोह

पर आया दिन तो सब फ़िदा हो गए 


चलती चक्की, पिसते लोग

कैसे-कैसे लोग फ़ना हो गए 


पति परमेश्वर मेरा स्वामी है

कह के लोग गुमशुदा हो गए


(आश्ना = कोई जान पहचान वाला)

राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2024 । सिएटल 







Sunday, December 15, 2024

इबादत को बताना क्या

इश्क़ होता, बता देते

इबादत को बताना क्या

मिलना-जुलना सुबह-शाम

रवायत को बताना क्या 


मरीज़ होते, बता देते

इलाज कोई करा लेते 

मर-मिटे हैं हम तुम पे

शहादत को बताना क्या 


बच्चे नहीं हैं कल-परसों के

कि हंगामा कोई रोज़ होगा

जन्नत हमारी दुनिया है

बादशाहत को बताना क्या 


जाते थे मन्दिर, रखते थे व्रत

बुत को भी तो पूजा है

टूटे भ्रम, पाई ख़ुशी 

छूटी लत को बताना क्या 


कब कौन बिगड़ा, कब कौन भागा

क्या था पाया, क्या है खोया

उपक्रम है ये जीवन का

तिजारत को बताना क्या 


(रवायत = रीति, रिवाज

तिजारत = व्यापार)

राहुल उपाध्याय । 15 दिसम्बर 2024 । सिएटल 







इतवारी पहेली: 2024/12/15


इतवारी पहेली:


राज कपूर के जन्मदिन पर जुटे #### 

शंघाई जिस देश में है उसका है ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 22 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 15 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली: 2024/12/08



On Sun, Dec 8, 2024 at 4:55 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


जब फ़िल्म से ## ## गई 

तब जीत रोल #### गई


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 15 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 8 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Friday, December 13, 2024

डेढ़ करोड़

मैं हरी मिर्च 

डंठल तोड़ कर ही लेता हूँ 

एकाध मिर्च फ़्री में मिल जाती है


कोई पोर्टलैंड से आता-जाता हो

तो आईफ़ोन मँगवा लेता हूँ 

कॉस्टको, नेटफ्लिक्स, टी-मोबाइल 

सब शेयर कर के

सौ-डेढ़ सौ यूँही बचा लेता हूँ 


मैं स्मार्ट हूँ 

बेवक़ूफ़ नहीं 

यूँही

डेढ़ करोड़ तनख़्वाह नहीं है मेरी


राहुल उपाध्याय । 13 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




ढाई घर

कोई ढाई घर चल के भी

दुनिया जीत लेता है 


ग्यारह साल की मेहनत 

एक दिन रंग लाती है 

प्रतिद्वंद्वी की गलती

जब अपने काम आती है 


ढाई घंटे का खेल

रिवाइंड कर-कर के

दुनिया बार-बार देखेगी


ग्यारह साल की मेहनत 

कोई न देख पाएगा 


बायो-पिक बन भी गई

सैकड़ों-हज़ारों संघर्ष 

कहाँ क़ैद कर पाएगी 


कर्म नहीं, फल ही

अक्सर पूजे जाते हैं 

अक्सर देखे जाते हैं 


राहुल उपाध्याय । 13 दिसम्बर 2024 । सिएटल 

Wednesday, December 11, 2024

मेरे हाथों से जो खाए

मेरे हाथों से जो खाए

खा के धूम जो मचाए 

उससे कहूँ मुझे पा तो बुलाए


कितना वो क्यूट है वो जाने कहाँ है

दिन भर हँसाए मुझे, मेरा जहां है 

जगता है या फिर सोता है वो

हँसता है या फिर रोता है वो

दौड़े-भागे झूम-झूम

घुटनों-घुटनों रूम-रूम

ऐसा लगे जैसे चाँद पे हैं आएँ


जादू सा जैसे कोई चलने लगा है 

मैं क्या करूँ दिल मचलने लगा है 

उसी से हैं दिन-रात मेरे

उसी से बंधे सब जज़्बात मेरे

झूमूँ-नाचूँ घुम-घुम

उसे लूँ मैं चूम-चूम

पल-पल उसे दूँ मैं लाख दुआएँ 


राहुल उपाध्याय । 11 दिसम्बर 2024 । सिएटल 

Tuesday, December 10, 2024

मुझे कोहरा पसन्द है

मुझे कोहरा पसन्द है

पल भर में शिमला हो आता हूँ 


सब धुंधला ज़रूर दिखता है 

पर यादें सुनहरी हो जाती हैं 


धूप हो

तो दस चिन्ताएँ घेर लेती हैं 

गर्मी हो

तो दिमाग़ गर्म हो जाता है 


मुझे कोहरा पसन्द है

न ज़्यादा आगे का दिखता है 

न पीछे का


राहुल उपाध्याय । 10 दिसम्बर 2024 । सिएटल 


मुझे कोहरा पसन्द है

मुझे कोहरा पसन्द है

पल भर में शिमला हो आता हूँ 


सब धुंधला ज़रूर दिखता है 

पर यादें सुनहरी हो जाती हैं 


धूप हो

तो दस चिन्ताएँ घेर लेती हैं 

गर्मी हो

तो दिमाग़ गर्म हो जाता है 


मुझे कोहरा पसन्द है

न ज़्यादा आगे का दिखता है 

न पीछे का


राहुल उपाध्याय । 10 दिसम्बर 2024 । सिएटल 


Monday, December 9, 2024

हरिनाम न रटो

देखो ओ दीवानों तुम ये ध्यान से सुनो

पढ़ो-लिखो, झूमो-गाओ, हरिनाम न रटो


राम को समझो, कृष्ण को जानो

काम को समझो, रूप को त्यागो 

कर लो ख़ुद पे, खुद पे भरोसा

ख़ुद ही टूटे फिर क्या होगा

जीवन में किसी के तुम ग़ुलाम न बनो


आओ मिलकर हम सब गाएँ 

जो भी समझे, उसे समझाएँ 

जग में आए, कुछ कर के जाए

बैठे-बैठे न हाथ फैलाए

जीवन नाम है काम का, बदनाम न करो


राहुल उपाध्याय । 9 दिसम्बर 2024 । सिएटल 

Sunday, December 8, 2024

Re: इतवारी पहेली: 2024/12/01



On Sun, Dec 1, 2024 at 6:55 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


स्टॉक में आई ये कैसी ####

लग रहा है जैसे कहीं ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 8 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 1 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




इतवारी पहेली: 2024/12/08


इतवारी पहेली:


जब फ़िल्म से ## ## गई 

तब जीत रोल #### गई


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 15 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 8 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Friday, December 6, 2024

पुष्पा 2 समीक्षा

सुकुमार द्वारा निर्देशित एवं अल्लू अर्जुन अभिनीत 'पुष्पा 2' में इतना मज़ा नहीं जितना कहानी प्रधान फ़िल्मों से मिलता है। पर एनिमल से कहीं ज़्यादा है। गाने ज़बरदस्ती ठूँसे गए हैं। लेकिन उन गानों का दर्शकों को इंतज़ार रहता है। इसलिए उनका होना आवश्यक हो जाता है। गाने चाहे जैसे हों, हैं बड़े उर्जावान। इतने सारे लोग और इतनी गति कि सर ही घूम जाए। पूरी फिल्म बहुत कसी हुई है। कमाल की एडिटिंग है। ट्रक हो, जीप हो, नाव हो, सब की रफ़्तार देखते ही बनती है। कलात्मकता चरम सीमा पर है। 


कहानी कोई ख़ास नहीं है। फिर भी एकाध प्रसंग को लेकर उत्सुकता बनी रहती है। एक बार तो लगा फिल्म ख़त्म हो गई है। फिर पता चला यह तो इंटरवल है। फिर लगा ख़त्म हो गई। फिर शुरू हो गई। कुछ ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी बना दी। 


अल्लू अर्जुन एक बहुत ही अच्छे अभिनेता है। उन्हें पुष्पा से हटकर भी कुछ हिन्दी फ़िल्में करनी चाहिए। 


मसाला फ़िल्म है पर मसाला पूरा नहीं है। एक ही ट्रैक पर चलती रहती है। कॉमेडी बहुत कम है। मधुर संगीत ग़ायब है। ड्रामा कम है। 


शेखावत की भूमिका में फहाद फ़ासिल का अभिनय भी शानदार है। 


अंत में जो क्रेडिट्स रोल होते हैं वे एक मज़ाक़ लगते हैं। कोई नहीं पढ़ पाएगा। क्या मतलब है ऐसे क्रेडिट्स देने का। 


राहुल उपाध्याय । 6 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Monday, December 2, 2024

पहले कपड़े

पहले कपड़े 

खूँटी पर टंगे दिखते थे

फिर अलमारी में बंद हो गए 


अब अलमारी भी दीवार में 

छुप गई है 


बटोरना बंद नहीं हुआ 

छुपाना शुरू हो गया है 


राहुल उपाध्याय । 2 दिसम्बर 2024 । सिएटल 



Sunday, December 1, 2024

इतवारी पहेली: 2024/12/01


इतवारी पहेली:


स्टॉक में आई ये कैसी ####

लग रहा है जैसे कहीं ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 8 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 1 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली: 2024/11/24



On Sun, Nov 24, 2024 at 9:20 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


त्रिपुरा की राजधानी है #####

मत खाइएगा कुछ, है ### ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 1 दिसम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 24 नवम्बर 2024 । सिएटल 




Saturday, November 30, 2024

विपासना

तुम अकेले रहते हो

इसका मतलब यह नहीं 

कि विपासना करते हो


क्या बिन बोले,

सुने, देखे, पढ़े, लिखे

रह सकते हो?


जब तुम तन्हा हो 

विचार रहित

तब तुम क्या हो?


साँस लेता पुतला?

ख़ुद ही को पालता-पोसता


शर्म आनी चाहिए तुम्हें 


राहुल उपाध्याय । 30 नवम्बर 2024 । सिएटल