सुकुमार द्वारा निर्देशित एवं अल्लू अर्जुन अभिनीत 'पुष्पा 2' में इतना मज़ा नहीं जितना कहानी प्रधान फ़िल्मों से मिलता है। पर एनिमल से कहीं ज़्यादा है। गाने ज़बरदस्ती ठूँसे गए हैं। लेकिन उन गानों का दर्शकों को इंतज़ार रहता है। इसलिए उनका होना आवश्यक हो जाता है। गाने चाहे जैसे हों, हैं बड़े उर्जावान। इतने सारे लोग और इतनी गति कि सर ही घूम जाए। पूरी फिल्म बहुत कसी हुई है। कमाल की एडिटिंग है। ट्रक हो, जीप हो, नाव हो, सब की रफ़्तार देखते ही बनती है। कलात्मकता चरम सीमा पर है।
कहानी कोई ख़ास नहीं है। फिर भी एकाध प्रसंग को लेकर उत्सुकता बनी रहती है। एक बार तो लगा फिल्म ख़त्म हो गई है। फिर पता चला यह तो इंटरवल है। फिर लगा ख़त्म हो गई। फिर शुरू हो गई। कुछ ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी बना दी।
अल्लू अर्जुन एक बहुत ही अच्छे अभिनेता है। उन्हें पुष्पा से हटकर भी कुछ हिन्दी फ़िल्में करनी चाहिए।
मसाला फ़िल्म है पर मसाला पूरा नहीं है। एक ही ट्रैक पर चलती रहती है। कॉमेडी बहुत कम है। मधुर संगीत ग़ायब है। ड्रामा कम है।
शेखावत की भूमिका में फहाद फ़ासिल का अभिनय भी शानदार है।
अंत में जो क्रेडिट्स रोल होते हैं वे एक मज़ाक़ लगते हैं। कोई नहीं पढ़ पाएगा। क्या मतलब है ऐसे क्रेडिट्स देने का।
राहुल उपाध्याय । 6 दिसम्बर 2024 । सिएटल
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