Friday, December 13, 2024

ढाई घर

कोई ढाई घर चल के भी

दुनिया जीत लेता है 


ग्यारह साल की मेहनत 

एक दिन रंग लाती है 

प्रतिद्वंद्वी की गलती

जब अपने काम आती है 


ढाई घंटे का खेल

रिवाइंड कर-कर के

दुनिया बार-बार देखेगी


ग्यारह साल की मेहनत 

कोई न देख पाएगा 


बायो-पिक बन भी गई

सैकड़ों-हज़ारों संघर्ष 

कहाँ क़ैद कर पाएगी 


कर्म नहीं, फल ही

अक्सर पूजे जाते हैं 

अक्सर देखे जाते हैं 


राहुल उपाध्याय । 13 दिसम्बर 2024 । सिएटल 

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