कोई ढाई घर चल के भी
दुनिया जीत लेता है
ग्यारह साल की मेहनत
एक दिन रंग लाती है
प्रतिद्वंद्वी की गलती
जब अपने काम आती है
ढाई घंटे का खेल
रिवाइंड कर-कर के
दुनिया बार-बार देखेगी
ग्यारह साल की मेहनत
कोई न देख पाएगा
बायो-पिक बन भी गई
सैकड़ों-हज़ारों संघर्ष
कहाँ क़ैद कर पाएगी
कर्म नहीं, फल ही
अक्सर पूजे जाते हैं
अक्सर देखे जाते हैं
राहुल उपाध्याय । 13 दिसम्बर 2024 । सिएटल
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