सदियों से चमकती
ये लहलहाती
महकती-फुलवारियाँ
जहां हिलते-डुलते
रंग-रंगीले सुमन
फैला-रहे-हैं
बाँट-रहे-हैं-चार-सू
ख़ुशियाँ-हज़ारों-हज़ार
(यह रचना पाई के पहले तेरह अंकों को याद करने के उद्देश्य से लिखी गई है।
3.14
15
9
26
53
58
9)
सदियों से चमकती
ये लहलहाती
महकती-फुलवारियाँ
जहां हिलते-डुलते
रंग-रंगीले सुमन
फैला-रहे-हैं
बाँट-रहे-हैं-चार-सू
ख़ुशियाँ-हज़ारों-हज़ार
(यह रचना पाई के पहले तेरह अंकों को याद करने के उद्देश्य से लिखी गई है।
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