Wednesday, December 18, 2024

सोया हूँ जबसे

सोया हूँ जबसे बाँहों में

सोया नहीं हूँ मैं तबसे

चैतन्य हूँ, मैं जागृत हूँ 

अमृत पिया है मैंने


ये दुनिया कितनी अजीब है 

कोई आता है, कोई जाता है 

घर कहते हैं हम जिसको

कोई सराय हो जैसे


मैं तनहा हूँ, परिशां हूँ 

या प्यार का कोई मारा हूँ 

कहने वाले कहते हैं 

सच कहूँ मैं किससे 


तुम जैसी हो मैं वैसा हूँ 

हालात हमारे हैं इक से 

खून ख़राबा तो होता है 

जब दिल से दिल हैं मिलते


क्या ग़लत हुआ, क्या सही हुआ 

ये सोचूँ इतना वक़्त नहीं 

चार दिन की ज़िन्दगी 

जी रहा हूँ कब से


राहुल उपाध्याय। 18 दिसम्बर 2024 । सिएटल 


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