Sunday, December 15, 2024

इबादत को बताना क्या

इश्क़ होता, बता देते

इबादत को बताना क्या

मिलना-जुलना सुबह-शाम

रवायत को बताना क्या 


मरीज़ होते, बता देते

इलाज कोई करा लेते 

मर-मिटे हैं हम तुम पे

शहादत को बताना क्या 


बच्चे नहीं हैं कल-परसों के

कि हंगामा कोई रोज़ होगा

जन्नत हमारी दुनिया है

बादशाहत को बताना क्या 


जाते थे मन्दिर, रखते थे व्रत

बुत को भी तो पूजा है

टूटे भ्रम, पाई ख़ुशी 

छूटी लत को बताना क्या 


कब कौन बिगड़ा, कब कौन भागा

क्या था पाया, क्या है खोया

उपक्रम है ये जीवन का

तिजारत को बताना क्या 


(रवायत = रीति, रिवाज

तिजारत = व्यापार)

राहुल उपाध्याय । 15 दिसम्बर 2024 । सिएटल 







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