बहुत बिगड़े
और कहने लगे
ये भी कोई ग़ज़ल है?
न इसका सर है
न पैर है
मैंने कहा
शांत,
गदाधारी भीम, शांत
ये जानवर नहीं
महज एक शेर है
कहने लगे
आप बात समझे नहीं
या बात समझना चाहते नहीं
ग़ज़ल की बारीकियाँ
आप सीखना चाहते नहीं
अब देखिए
न मतला है
न मक़ता है
भला ऐसे भी कोई ग़जल कहता है?
मैंने कहा
देखिए
आप बात का बतंगड़ न बनाईए
यूँ मुझ पर इल्ज़ाम पर इल्ज़ाम न लगाईए
न तो इसमें नमक है
और न ही इसे मैंने तला है
फिर भी आप कहते हैं कि
इसमें नमकता है
नम तला है?
कहने लगे
आपकी मसखरी की मैं खूब देता हूँ दाद
लेकिन नहीं पढ़ूँगा
आपकी कोई रचना
आज के बाद
मैंने कहा
आप की खुजली
और आप के दाद
आप ही रखें मियाँ
सदा अपने पास
न तो आप मेरे गुरू हैं
न मैं आपका दास
लिखता हूँ बेधड़क
लिखूँगा बिंदास
रद्दी में रदीफ़ फ़ेंकूँ
कॉफ़ी में घोलूँ काफ़िया
गीत-ग़ज़ल-नज़्म नहीं
न लिखूँ मैं रूबाईयाँ
लिखता हूँ कविता मैं
नहीं बनाता मैं दवाईयाँ
कि नाप-तोल के उनमें डालूँ
कड़वी जड़ी-बूटियाँ
सिएटल 425-445-0827
3 मार्च 2009
Tuesday, March 3, 2009
डॉक्टर ग़ज़ल प्रसाद
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:51 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: new, TG, world of poetry
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6 comments:
लिखता हूँ कविता मैं
नहीं बनाता मैं दवाईयाँ
कि नाप-तोल के उनमें डालूँ
कड़वी जड़ी-बूटियाँ
वाह भाई वाह...कौन कहता है की आप बनायें दवाईयां...ये तो हकीमों का काम है...आप तो बिंदास लिखिए...ऐसे ही.
नीरज
वाह! वाह!!
इन्हीं बातों के चलते हमने हिन्दी साहित्य की एक नई विधा ईजाद की है -
व्यंज़ल
:)
Bahut khoob rahul ji..
sahi kaha aapne, ki jo dil me aayega wahi likhta hu...
But pata nahi...hame to rhyme milaa kar padhne me mazaa aata hai..
kavita bhi ho, to jisko lay ke saath sunaaya jaa sake...
:) nice one
badhiya:)mast
Laughed my guts out! Great, like the tone of this one.
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