Saturday, May 7, 2016

है चाँद पागल, समंदर बेहाल


राधा न हो, मादा न हो
संसार जैसे आधा न हो

क्रश भी न हो, चाहत न हो
जीवन इस क़दर सादा न हो

हर गाँव में, हर शहर में 
कोई न हो जिसने चाहा न हो

है चाँद पागल, समंदर बेहाल
दूरी इतनी ज़्यादा न हो

है चाँद पागल, समंदर बेहाल
इश्क़ कभी पुराना न हो

है चाँद पागल, समंदर बेहाल
इश्क़ कभी सयाना न हो


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1 comments:

Anonymous said...

कविता में अच्छी बात कही गयी है कि हर दिल में किसी के लिए सच्चा प्रेम होना ज़रूरी है।

अंत में समंदर और चाँद को लेकर तीन अलग बातें कही गयी हैं - यह style बढ़िया लगा:
"है चाँद पागल, समंदर बेहाल
दूरी इतनी ज़्यादा न हो...
इश्क़ कभी पुराना न हो...
इश्क़ कभी सयाना न हो..."