पटरियाँ अगर मिल जाएँ तो दुर्घटना तय है
रंग भी अगर मिल जाएँ तो बेरंग हो जाते हैं
सुर भी अगर अपनी पहचान खो दें
तो कोलाहल मच जाता है
पृथक-पृथक ही सृष्टि पनपे
पृथक-पृथक इसका रूप मनोहर
कोई फूल बने, कोई पत्ती बने
कोई गुलमोहर, कोई अमलतास बने
पृथकता ही से पीरियाडिक टेबल
पृथक-पृथक खिले फल-फूल यहाँ
घुल-मिल के ही रह जाते तो
ख़ाक को तकती ख़ाक यहाँ
यूँ मिल जाने की, मिट जाने की
चाह है उलटी धार सखा
अब निकल पड़े हो, तो निकल पड़ो
मुड़-मुड़ के न देखो कि वो तार कहाँ
https://youtu.be/Md0L3q4wdq4
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