Thursday, March 23, 2017

पटरियाँ

पटरियाँ अगर मिल जाएँ तो दुर्घटना तय है

रंग भी अगर मिल जाएँ तो बेरंग हो जाते हैं

सुर भी अगर अपनी पहचान खो दें 

तो कोलाहल मच जाता है


पृथक-पृथक ही सृष्टि पनपे

पृथक-पृथक इसका रूप मनोहर 

कोई फूल बने, कोई पत्ती बने

कोई गुलमोहर, कोई अमलतास बने


पृथकता ही से पीरियाडिक टेबल

पृथक-पृथक खिले फल-फूल यहाँ 

घुल-मिल के ही रह जाते तो

ख़ाक को तकती ख़ाक यहाँ 


यूँ मिल जाने की, मिट जाने की

चाह है उलटी धार सखा

अब निकल पड़े हो, तो निकल पड़ो

मुड़-मुड़ के देखो कि वो तार कहाँ


https://youtu.be/Md0L3q4wdq4











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