Friday, September 16, 2022

यादों में बिछड़े यार की कितना सुकून है

यादों में बिछड़े यार की कितना सुकून है

चैन कहाँ मिलेगा वो जो मिलता है प्रेम में 


हाथों में आईना नहीं कलम है धारदार 

लिखने लगे हैं फ़ैसले संग-ओ-सलीब के 


ढलने को वस्ल की रात हो तो चढ़ता फ़ितूर है 

उजालों को जा के बोल दूँ कि आए वो देर से 


ग़लती नहीं की आपने कि दिल चुरा लिया 

दिल की तो आरज़ू यही कि ख़ुशबू में साँस ले


अच्छा ही है कि मरने पे सड़ता शरीर है

प्रेम छटाँक भर भी नहीं रहता है देह से


राहुल उपाध्याय । 16 सितम्बर 2022 । सिएटल 




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