मैं महान हूँ यह कहना किसे शोभा देता है
पर कभी-कभी यह कहना ज़रूरी हो जाता है
ख़ासकर तब जब कोई आपकी बात सुनता ही नहीं
यहाँ तक कि बोलने की भी इजाज़त नहीं देता
इजाज़त?
कुछ कहने के लिए इजाज़त क्यों चाहिए?
कौन होता हैं वो जो तुम्हें इजाज़त देता है?
क्यूँ उसे इतना सर चढ़ा रखा है?
लेकिन आकाओं ने इसे ही शिष्टाचार बता रखा है
किसी की बात ख़त्म होने से पहले अपना मुँह मत खोलो
धर्म परिवर्तन भी तब ज़रूरी हो जाता है
जब वह सिर्फ़ अपनों का ही भला करता हो
दूसरों को दरकिनार करता हो
दूसरों पर अत्याचार करता हो
बड़बोला होना एक छाप छोड़ जाता है
न जाने कितनों को प्रेरित कर जाता है
एक नई लहर दौड़ जाती है
सारी दुनिया उमड़ आती है
जिन्हें मुक्केबाज़ी से कोई सरोकार नहीं है
उनमें भी शक्ति संचार कर जाती है
मैं महान हूँ!
मैं सबसे महान हूँ!
साठ साल हो गए इन शब्दों को
कहे हुए
तब मैं नहीं था सुनने के लिए
लेकिन आज भी तरोताज़ा है
स्फूर्ति से सराबोर कर जाते हैं
करते रहेंगे पीढ़ी दर पीढ़ी
कई बार जो नहीं कहना है
वह भी कह देना चाहिए
सारे नियम-क़ानून तोड़ देने चाहिए
राहुल उपाध्याय । 26 फ़रवरी 2024 । सिएटल
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