Thursday, May 9, 2024

आ गए आज तेरी महफ़िल में

आ गए आज तेरी महफ़िल में 

तुझको पाने की चाह रखते हैं 

पहले कुछ और थे मगर अब तो

चलते-फिरते मज़ार लगते हैं 


तुझको देखा तो ये नज़र आया

ज़िन्दगी धूप और तू साया

अपनी बाँहों में आ हमें ले ले

तुझको हम बार-बार कहते हैं 


मिल गई हों जिसे सभी ख़ुशियाँ 

उसने देखी नहीं अभी दुनिया 

सारे सुख बुलबुला-ए-पानी हैं

एक गम ही तो साथ चलते हैं 


चल दिए हैं सभी जो थे प्यारे

कई थे दीप, तो कई तारे

आतीं-जातीं रही हैं तक़दीरें 

अब तेरे हाथ हाथ धरते हैं


कल तलक थे कहाँ हसीं मंजर

हम थे घायल, ताकते खंजर 

इक उम्मीद आज जागी है

तुझपे हम जाँ निसार करते हैं


राहुल उपाध्याय । 9 मई 2024 । सिएटल 

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