Saturday, October 31, 2020

इतवारी पहेली: 2020/10/25

 जिसे कमाना है खून-पसीने से ## ##

उसे रास्ते के हर रावण को है ###


हल: हर आना/हराना

इतवारी पहेली: 2020/10/18

 एक तरफ़ हो रहा है देवी का ####

और सुन कर ख़बरें है इधर ## ##


हल: आगमन/आग मन

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ

किसका जश्न मनाया जाता है 

किसका स्मृति दिवस होता है

सब सत्ता पर निर्भर होता है


एक लौहपुरुष, एक दुर्गा-तुल्य

सब समर्थकों के जुमले हैं

इंसानों में इनकी गिनती कहाँ 

ये विचारधाराओं के पुतले हैं


एक जन्मे, एक मरीं

हज़ारों एक ही दिन कत्ल हुए

जिन्हें चाहा याद किया 

जिन्हें चाहा भूल गए 


है इतिहासकारों में खोट कहाँ 

जब हम ही बावले बनते हैं 

अपने ही जीवनकाल की घटनाएँ 

जब चुन-चुनकर हम भूलते हैं 


राहुल उपाध्याय । 31 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


Friday, October 30, 2020

कहाँ से दर्द भरे दिन

कहाँ से दर्द भरे दिन यहाँ उतर आए

बिना मास्क के माशूक़ ना नज़र आए


ख़ुशी की चाह में मैंने उठाये रंज बड़े

मेरा नसीब कि मेरे क़दम जहाँ भी पड़े

महामारी की वहाँ से भी खबर आए


उदास रात है वीरान दिल की महफ़िल है

न हमसफ़र है कोई और न कोई मंज़िल है

दवाओं का न दुआओं का कोई असर आए


(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 30 अक्टूबर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/7zkJZKCGaiU 



Thursday, October 29, 2020

कब कौन बनेगा लीडर

कब कौन बनेगा लीडर

हम नहीं हैं इस पर निर्भर 

देश का नाम करेगा रोशन

मेहनतकश हरेक सिटिज़न 


हम नहीं हैं इतने मूरख

कि रखें उनसे ये उम्मीदें 

एक नन्हें से वोट के बदले 

हमें सारी ख़ुशियाँ दे दे

कर दे हमें मालामाल 

रंगों से भर दें आँगन 


आज मेहनत कर के अपने

घर-बार हम ख़ूब चलाए

कल को भी कर से अपने 

जो बन सके वो हम कमाए

क्यूँ कर दें किसी के हवाले

अपना ये सुंदर जीवन


जब तक इस दुनिया में

करने को काम रहेगा

हम नहीं हटेंगे पीछे 

पहले हमारा नाम रहेगा

तब तक जूझते रहेंगे

जब तक न मिटे हर अड़चन


(प्रेम धवन से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 29 अक्टूबर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/0_VXhe8HUa4 


तेरी बातों के सिवा

तेरी बातों के सिवा चुनाव में रखा क्या है


तू बके सुबह-सुबह, तू बके शाम ढले

तेरा बकना मेरा पकना यूँही प्रचार चले


क़समों की रस्मों में वादे हज़ारों हैं लिखे हुए

हैं मेरे ख्वाबों के क्या-क्या नगर इनमें ढहते हुए


इनमें मेरे आनेवाले ज़माने की तस्वीर है

सियासत की कालिख से लिखी हुई मेरी तक़दीर है


(मजरूह से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 28 अक्टूबर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/y_0Me1vyMnI 

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Tuesday, October 27, 2020

फिर वही बात है चुनाव की

फिर वही बात है 

फिर वही बात है चुनाव की 

बार-बार चुनाव में चुना करेंगे उन्हें 


मासूम सी भीड़ में, 

जब कोई दीवाना चले 

मास्क लगा लेना तुम, 

वैक्सीन न कोई मिले

ये बात है चुनाव की, 

चुनाव की बात है 


वादे ख्वाब हैं, 

दो दिन में टूट जाएँगे 

सच न मान लेना इन्हें, 

दो दिन में झूठ जाएँगे 

ये बात है चुनाव की, 

चुनाव की बात है 


(गुलज़ार से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 27 अक्टूबर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/Lw_axmMQhNk 


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Thursday, October 22, 2020

मुझको इस रोग की तन्हाई से आज़ाद करो

https://youtu.be/d88zCwRb2hA 


मुझको इस रोग की तन्हाई से आज़ाद करो

जिससे कुछ बदले ही नहीं वो चुनाव न दो 


रोशनी हो न सकी दिल भी जलाया मैंने 

डॉक्टर आया ही नहीं लाख बुलाया मैंने 

मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो


किस कदर जल्द किया मुझसे किनारा तुमने

कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने

छुप गए हो तो मुझे याद ही आया न करो


(शमीम जयपुरी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 22 अक्टूबर 2020 । सिएटल 




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Wednesday, October 21, 2020

तीस पतझड़ बीते यहाँ मेरे


तीस पतझड़ बीते यहाँ मेरे

हर पतझड़ मिले रंग नए से

कितनी ही बार इन्हें मैं देखूँ

बार-बार लगे रंग चितेरे


यूँ तो सावन-भादो भी आए

घर-बार सब ख़ूब नहाए

बरसते पानी में मदहोश चला मैं

फ़ायर-प्लेस पे फिर जम के तपा मैं


शीत ऋतु भी अतिशय भाई

चारों तरफ़ सफ़ेदी सी छाई

पल-पल बच्चे किलकारी मारें

बर्फ़ फेंके, स्नोमेन सँवारें


ग्रीष्म ऋतु भी भली लगती है

झंडों और आतिश की होड़ लगती है

हर पिकनिक में तरबूज़ कटते

बार्बेक्यू पे भुट्टे सिकते


पर पतझड़ की बात अलग है

निस दिन निस दिन बढ़ती कसक है

एकाकीपन नहीं एकाकी लगता

ये मुझसे, मैं इससे कहता

जीवन की हर उहापोह को

बंधु-बांधव के राग-मोह को

कब किसने कितना रंग बदला

अबकी बार किसने संग छोड़ा


तीस बरस बीते पतझड़ में

रंग बदलते इस उपवन में 

भरे-रीते कुम्भ कई-कई सारे

कभी कुछ जीते, कभी कुछ हारे

जीवन का अब हिसाब यही है

लौ तो जलती है पर आग नहीं है


15 सितम्बर 2016

अमरीका में पदार्पण की 30 वीं वर्षगाँठ 

Friday, October 16, 2020

आगमन

कद्दू 

जब खाने की जगह

खेलने के लिए 

ख़रीदा जाने लगे 

समझो

हेलोवीन आ गया है 


हरा-भरा पेड़ 

काट कर

घरों में 

सजाया जाने लगे

समझो

क्रिसमस आ गया है


मोमबत्ती 

रोशनी नहीं 

ख़ुशबू के लिए 

जलाई जाने लगे

समझो रईसी आ गई है 


राहुल उपाध्याय । 16 अक्टूबर 2020 । सिएटल 

Thursday, October 15, 2020

ये लफड़ों, ये झगड़ों, ये झड़पों का भारत

ये लफड़ों, ये झगड़ों, ये झड़पों का भारत 

ये इनसां के दुश्मन समाजों का भारत 

ये मज़हब के झूठे रिवाज़ों का भारत 

ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है


हर एक जिस्म पागल, हर एक रुह प्यासी

विज्ञापन पे खटपट, ट्वीटर पे लड़ाई 

ये भारत है या आलम-ए-बदहवासी


यहाँ एक खिलौना है बिटिया की हस्ती

ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती

यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती


जवानी भटकती है बेरोज़गार बनकर

जवां जिस्म मिटते है लाचार बनकर

यहाँ स्कूल खुलते हैं व्यापार बनकर


ये भारत जहां इंसानियत नहीं है

क़ानून नहीं है, हिफ़ाज़त नहीं है

जहां सच सुनने की आदत नहीं है 


ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 15 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


Tuesday, October 13, 2020

चुपके-चुपके रात-दिन

https://youtu.be/8CzcTsFzxpU 


चुपके-चुपके रात-दिन 

व्हाट्सेप पे आना याद है 

हमको अब तक आपका

इमोजी में शर्माना याद है 


सोमवार को लंच पे

या बुध को आधी रात में

आपके नोटिफिकेशन का

धड़धड़ टिंग-टिंगाना याद है 


छेड़ देना वो मेरा

माज़ी का क़िस्सा बेसबब 

और आपका बेपरवाह 

उलझ जाना याद है 


होली-दीवाली हो या 

हो कोई तीज-त्योहार 

वो आपका मुझको 

दुआओं में लाना याद है 


वो आपकी टाईपिंग के जलवे 

और मेरी लड़खड़ाहट

मैं कहूँ कुछ उससे पहले

दूसरा दागना याद है 


घंटों-घंटों बात हो

और घड़ी झूठ लगने लगे

घड़ी-घड़ी बाय-बाय

कह के न काटना याद है 


कुछ मिनट ही हैं गुज़रे 

हमें तुमसे सब कहे

और कितना कुछ हुआ

वो सब बताना याद है


राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल 

Monday, October 12, 2020

मेनका

तुम उड़ाती हो 

व्याकरण की धज्जियाँ 

मैं कुछ नहीं कहता


तुम लिखती हो

रोमन में हिन्दी 

मैं कुछ नहीं कहता


वर्तनी 

किस चिड़िया का नाम है 

तुम नहीं जानती 

और मैं  

कुछ नहीं कहता


क्या यही प्यार है?


तुम ग़ैर हो

ग़ैर ही रहोगी 

फिर भी 

अपनों से ज़्यादा 

फ़िक्र है तुम्हें मेरी

और मुझे तुम्हारी 


क्या यही प्यार है?


हज़ारों मील दूर हो मुझसे 

और इतने क़रीब 

कि जैसे यह फ़ोन 

यह कविता

यह टेक्स्ट 

यह पोस्ट 


क्या यही प्यार है?


ऐसा भी नहीं कि 

हमें ग़म नहीं 

दुखों के पहाड़ नहीं 

फिर 

इतनी ख़ुशी क्यों है?

चेहरे पर मिटाए न मिटे ऐसी हँसी क्यों है?

पाँव में थिरकन क्यों है?

लबों पे गीत क्यों है?

आँखों में चमक क्यों है?

फ़ोटो इतने रंगीन क्यों हैं?

कविताओं में बहार क्यों है?


क्या यही प्यार है?


राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


Sunday, October 11, 2020

झूठी-सच्ची कहानी

ये मसर्रत का है किस्सा

कि मर्सिया 

नहीं जानता

मैं तो मश्कूर हूँ कि

मेरे हर्फ़ तुमसे मुख़ातिब हैं


मैं हबीब हूँ, आश्ना हूँ, या कुछ भी नहीं 

मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता 

मेरे लिए इतना ही काफ़ी है कि 

मैं तुम्हारे ज़हन में हूँ 


तुम होगी कभी

मेरी सिर्फ़ मेरी

इसका भी किया

कोई एहतिमाम नहीं 


तुम हो ही ख़ुशबू की तरह

क्यूँ न सबका बराबर

इख़्तियार हो 


तुम्हें देखा

तुम्हें चाहा

तुम्हें जी-जान से चाहा

यही मेरी ज़िंदगी 

का लब्बोलुआब है


मुशाहदे मुस्तक़्बिल के

तल्ख़ होंगे के शीरीं 

पता नहीं 

लेकिन होंगे मुस्तक़िल 

कोई एहतिमाल नहीं 


मरना है एक दिन

और मरूँगा ज़रूर 

पर तुम पर न मरा

तो फिर ख़ाक जीया


मैं तुम्हारा अमिताभ नहीं, ना सही

तुम मेरी रेखा नहीं, ना सही

लेकिन एक झूठी-सच्ची कहानी सही


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


मसर्रत = आनन्द 

मर्सिया = शोकगीत

मश्कूर = कृतज्ञ

हर्फ़ = अक्षर 

मुख़ातिब = सम्बोधित 

हबीब = मित्र

आश्ना = परिचित 

एहतिमाम = प्रबंध 

इख़्तियार = अधिकार

लब्बोलुआब = निचोड़ 

मुशाहदे = अनुभव

मुस्तक़्बिल = भविष्य 

तल्ख़ = कड़वे

शीरीं = मधुर

मुस्तक़िल = निरंतर 

एहतिमाल = संदेह 


Saturday, October 10, 2020

इतवारी पहेली: 2020/10/11

इतवारी पहेली:


देश पर है जिनकी अमिट छाप, ### ##

पूरी तरह से सार्थक है नाम उनका ####


दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 18 अक्टूबर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2020 । सिएटल

हल: अमित आभ/अमिताभ



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Thursday, October 8, 2020

तेरे मेरे बीच में

https://youtu.be/XpJLpkxsutM 


तेरे मेरे बीच में 

कैसा है ये टेंशन अंजाना

मैंने नहीं जाना 

तूने नहीं जाना 


कितनी ज़ुबानें बोले लोग हमजोली 

क्यूँ नहीं बोले प्रेम की बोली

बोले जो शमा परवाना 


नींद न आए मुझे चैन न आए

लाख जतन करूँ समझ न आए

लड़ता है क्यूँ ज़माना


(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 8 अक्टूबर 2020 । सिएटल