चुपके-चुपके रात-दिन
व्हाट्सेप पे आना याद है
हमको अब तक आपका
इमोजी में शर्माना याद है
सोमवार को लंच पे
या बुध को आधी रात में
आपके नोटिफिकेशन का
धड़धड़ टिंग-टिंगाना याद है
छेड़ देना वो मेरा
माज़ी का क़िस्सा बेसबब
और आपका बेपरवाह
उलझ जाना याद है
होली-दीवाली हो या
हो कोई तीज-त्योहार
वो आपका मुझको
दुआओं में लाना याद है
वो आपकी टाईपिंग के जलवे
और मेरी लड़खड़ाहट
मैं कहूँ कुछ उससे पहले
दूसरा दागना याद है
घंटों-घंटों बात हो
और घड़ी झूठ लगने लगे
घड़ी-घड़ी बाय-बाय
कह के न काटना याद है
कुछ मिनट ही हैं गुज़रे
हमें तुमसे सब कहे
और कितना कुछ हुआ
वो सब बताना याद है
राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल
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सुन्दर
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