तुम उड़ाती हो
व्याकरण की धज्जियाँ
मैं कुछ नहीं कहता
तुम लिखती हो
रोमन में हिन्दी
मैं कुछ नहीं कहता
वर्तनी
किस चिड़िया का नाम है
तुम नहीं जानती
और मैं
कुछ नहीं कहता
क्या यही प्यार है?
तुम ग़ैर हो
ग़ैर ही रहोगी
फिर भी
अपनों से ज़्यादा
फ़िक्र है तुम्हें मेरी
और मुझे तुम्हारी
क्या यही प्यार है?
हज़ारों मील दूर हो मुझसे
और इतने क़रीब
कि जैसे यह फ़ोन
यह कविता
यह टेक्स्ट
यह पोस्ट
क्या यही प्यार है?
ऐसा भी नहीं कि
हमें ग़म नहीं
दुखों के पहाड़ नहीं
फिर
इतनी ख़ुशी क्यों है?
चेहरे पर मिटाए न मिटे ऐसी हँसी क्यों है?
पाँव में थिरकन क्यों है?
लबों पे गीत क्यों है?
आँखों में चमक क्यों है?
फ़ोटो इतने रंगीन क्यों हैं?
कविताओं में बहार क्यों है?
क्या यही प्यार है?
राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2020 । सिएटल
1 comments:
जी यही है। :)
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