तुम थी
मेरे जीवन में
यह मेरे जीवन की उपलब्धि है
तुम नहीं हो
इसका मुझे ग़म है
यह ग़म
मेरी खुशियों को कम नहीं कर सकता
कि तुम थी
मेरी बाहों में
पनाहों में
मेरा चेहरा था
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के
सायों में
दुनिया का कोई ग़म
इस ख़ुशी को कम नहीं कर सकता
हर चीज़
हर वक्त
अपने नियंत्रण में हो
क़ाबू में हो
अपने हाथ में हो
यह मोहब्बत नहीं
तानाशाही है
और यह भी नहीं कि
तुम मुझे अब नहीं चाहती
या किसी और को चाहती हो
बस कठपुतली हो किसी के हाथों में
तुम स्वयं
अपनी शक्ति का स्रोत हो
तुम्हें स्वयं
इन अदृश्य सलाख़ों को काटना है
तुम्हें स्वयं
इन अदृश्य ज़ंजीरों को खोलना है
तुम जब चाहोगी तब
तुम जहाँ चाहोगी वहाँ
मैं मिलूँगा तुमसे
मेरा वादा है तुमसे
बस अपनी शक्ति साथ लाना
राहुल उपाध्याय । 1 अक्टूबर 2021 । रतलाम