थी इतने पास कि
ख़ुशबू तन-मन में बस गई
थी इतनी दूर कि
होंठ प्यासे रह गए
हाथ इतने पास कि
स्वर्ग ज़मीं पे उतार दूँ
थाम लूँ, सँवार दूँ
ज़ुल्फ परत-परत निखार दूँ
एक पल में
उम्र सारी गुज़ार दूँ
न हाथ हिलें
न होंठ झुकें
नि:शब्द
निष्क्रिय
निश्चिंत रहें
जो मौन था, विराम था, विश्राम था
सात जनम के साथ का पर्याय था
राहुल उपाध्याय । 25 सितम्बर 2021 । भोपाल
4 comments:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 26 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर रचना
बेहतरीन रचना।
सादर।
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