सुख-दु:ख की बात है
सुख-दु:ख का साथ है
आ गए यहाँ हैं जो
सुख-दु:ख के साथ हैं
पास सबके इतना है
फिर भी न कोई पास है
साथ हो तो हमसफ़र
वरना टाईम पास है
हर तरफ़ गरीब हैं
हर तरफ़ धनवान हैं
है वस्तुस्थिति साफ़ सी
कौन कहें अन्याय है
छप रही ख़बर मगर
कि आदमी गुणवान है
है इतना क़ाबिल तो फिर
क्यूँ टूटता इन्सान है
तेरे मेरे ज्ञान की
किस को क्या दरकार है
चार किताब जो पढ़ गया
बन गया विद्वान है
जो था उसे पा लिया
खो दिया अज्ञात है
हैं इन्द्रियों की ख़ामियाँ
अनजान से अनजान है
राहुल उपाध्याय । 2 सितम्बर 2021 । सिएटल
1 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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