Wednesday, September 8, 2021

दिन-रात

पूरे ब्रह्माण्ड में दिन-रात कहीं नहीं है 

सूरज कहीं आता-जाता नहीं है


जिसे जितनी ऊर्जा लेनी है ले ले

या मुँह फेर ले

सब उसके ऊपर है

सब उसके हाथ है

सूरज का इससे कोई सरोकार नहीं है 


पूरे ब्रह्माण्ड में दिन-रात नहीं है 

पूरे ब्रह्माण्ड में सुख-दु:ख नहीं है


राहुल उपाध्याय । 8 सितम्बर 2021 । सिएटल 

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


3 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-०९-२०२१) को
'हे गजानन हे विघ्नहरण '(चर्चा अंक-४१८३)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

हरीश कुमार said...

बहुत शानदार रचना बहुत-बहुत बधाई

शाला दर्पण said...

छोटी सी मगर बहुत सुंदर रचना।