पूरे ब्रह्माण्ड में दिन-रात कहीं नहीं है
सूरज कहीं आता-जाता नहीं है
जिसे जितनी ऊर्जा लेनी है ले ले
या मुँह फेर ले
सब उसके ऊपर है
सब उसके हाथ है
सूरज का इससे कोई सरोकार नहीं है
पूरे ब्रह्माण्ड में दिन-रात नहीं है
पूरे ब्रह्माण्ड में सुख-दु:ख नहीं है
राहुल उपाध्याय । 8 सितम्बर 2021 । सिएटल
3 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-०९-२०२१) को
'हे गजानन हे विघ्नहरण '(चर्चा अंक-४१८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत शानदार रचना बहुत-बहुत बधाई
छोटी सी मगर बहुत सुंदर रचना।
Post a Comment