Saturday, September 11, 2021

अभी तो फूल भी सूखे नहीं हैं

अभी तो फूल भी सूखे नहीं हैं

और याद धूमिल हो जाती है 

डी-पी की माला भी

आँख नहीं नम कर पाती है 


वक़्त में है कुछ ऐसी दवा 

कि बड़े से बड़ा दु:ख खा जाती है 

रोते-बिलखते बच्चे को भी 

किलकारियों से भर जाती है 


तुम ही ख़ुद शर्माते हो कि

तुम्हें ये क्या हो गया 

अभी तो अस्थियाँ बही नहीं 

और दु:ख हवा हो गया


कृष्ण का जन्म, गणेश का पर्व

सब के सब मना रहे हो

गए हुए दिन हुए छत्तीस नहीं 

और छत सर पर उठा रहे हो


रोकने-टोकनेवाला कोई नहीं 

जो मन में आए किए जा रहे हो


बरसी-छ: माही कुछ तो करते

फिर जो चाहे तुम वो करते


निर्बाध जब हो जाए जीवन

लोक-लाज से कब वो डरता है 


अभी तो फूल भी सूखे नहीं हैं


राहुल उपाध्याय । 11 सितम्बर 2021 । सिएटल 




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1 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक , जाने वाले के साथ कुछ समय ही शोक मनाते हैंऔर फिर इस दुनियादारी में लग जाते हैं ।