फ़ास्ट कोई करता नहीं
ब्रेकफास्ट सभी करते हैं
दया नाम की कोई चीज़ नहीं
धन दान सभी करते हैं
हम-आप-सभी-दीवाने
सुख-चैन से कहाँ रहते हैं
जो है ही नहीं उसका
पीछा सदा करते हैं
अच्छा लगता है
न चैन में संदूक, न संदूक पे ताला
डब्बे का हर यात्री
अपना सा मुझे लगता है
सम्बन्ध में आईं दरारें
दिखती नहीं चुभती हैं
यादों का भी एक काम हैं
आँख नहीं सूखी रहती हैं
दाँतों से हँसी, आँखों से आँसू का
कोई सम्बन्ध नहीं
मुस्कराहट छलकती है शब्दों से
आँसू उमड़ते हैं पन्नों से
राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2021 । दिल्ली और भोपाल के बीच
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