Wednesday, December 1, 2021

भय भी है छिपा-छिपा

https://youtu.be/rf32jo43gjA


भय भी है छिपा-छिपा

पाप भी दबा-दबा 

न जाने कैसे, कब, कहाँ 

हो गए ये निहां 


हर घड़ी है आग सी 

जल रही दिमाग़ में 

न जाने कब और कहाँ 

दफ़्न हो सब राख में 

राज़ भी खुले नहीं 

पूरी हो ये दास्तां


चला गया था मैं कभी

यार के दयार से

चलते-चलते आ गया

आज उसी कगार पे

ये माजरा है क्या कभी

समझ सकेगा ये जहां 


हरेक बात हुस्न की

घाव दिल पे कर गई

हरेक बार दिल कहे

पीर है ये प्यार की

तड़प उठेगा चाँद भी

देखेगा जब वो निशाँ 


वो आज भी है याद मुझे 

जो आज ही सी रात थी

न बर्फ़ थी, न आग थी

बस दो दिलों की बात थी

सुलग रहे हैं आज मगर

जो कर रहे थे तब धुआँ 


राहुल उपाध्याय । 1 दिसम्बर 2021 । सिएटल 











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4 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Sudha Devrani said...

हर घड़ी है आग सी

जल रही दिमाग़ में

न जाने कब और कहाँ

दफ़्न हो सब राख में

राज़ भी खुले नहीं

पूरी हो ये दास्तां
बहुत ही सार्थक एवं सुन्दर उधेड़ बुन
वाह!!!

Manisha Goswami said...

बहुत ही बेहतरीन