पल में भड़क के
पल में लपक के
उसने गले से लगाया
जितना ही सोचूँ
उतना ही पाऊँ
उसने तुझे क्यूँ बुलाया
तेरी ही आँखों ने
देखे जो सपने
पूरे हमें हैं वो करने
जितने भी कोरे
काग़ज़ हैं सारे
रंगों से हैं भरने
तेरे जैसा
बनना है हमको
मानें ना कोई हार
कसनी होगी
कमर हमें
कई कई बार
तेरे जैसा
बनना है हमको
मानें ना कोई हार
कसनी होगी कमर हमें
कई कई बार
पूरब हो पश्चिम
उत्तर हो दक्षिण
दुश्मन न कोई सताए
जहाँ तक निगाहें
हमारी ये जाए
कोई न हमको डराए
तेरा हो दर्पण
तेरा हो दर्शन
राह हमें जो दिखाए
घनघोर-भयानक
घड़ी हो कोई
तेरी ही बात याद आए
पलकों पे आँसू
सूखेंगे एक दिन
भूलें न तेरी बात
सबको समझें
सबको जानें
थामें सबका हाथ
देश ये अपना
अपना ही है
कश्मीर हो या गुजरात
महफ़ूज़ हो
कोना-कोना
चाहे दिन हो या रात
राहुल उपाध्याय । 8 दिसम्बर 2021 । सिएटल
1 comments:
सुन्दर सृजन
Post a Comment