कई महीनों से
कई हफ़्तों से
मैं आँक रहा था
अपना करम
पाया के अभी कुछ किया ही नहीं
वादों में कहीं
यादों में कहीं
कहीं झांक रही थी
कोई पगली
कुछ देर हुई
न मैं समझ पाया
फिर आँख खुली
तो थी माया
अपनों को बहुत
अपना समझा
उनके ही इशारों
पर नाचा
अब आज कहाँ
मैं गुर सीखूँ
और छोड़ चलूँ
अपनी छाया
राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2021 । सिएटल
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