Tuesday, December 14, 2021

चिराग़ भी ढूँढता है अंधेरा

चिराग़ भी ढूँढता है अंधेरा

अपने वजूद के लिए


संकट न हो तो

अस्तित्व ही नहीं 

किसी का किसी के लिए


दाना-पानी ही ज़रूरी होता

तो हम पेड़ होते

कभी हरे, कभी ख़ाली, 

तो कभी पीले होते

न चलते, न उड़ते

एक ही जगह से चिपके रहते

न मिलते, न जुलते

बस सूरज तकते

बारिश पीते


कहीं आग लगे

तो कुछ बात बने

कहीं गाज गिरे

तो मदद करें

कोई झगड़ा हो

तो बीच-बचाव करें

किसी के दिल पे हाथ रखें 

दिल से दिल की बात कहें


कुछ टूटे-फूटे

तो कुछ काम मिले


संकट नहीं 

तो कुछ भी नहीं 


चाहे 

नेता हो

देवता हो

या कोई भी 


राहुल उपाध्याय । 14 दिसम्बर 2021 । सिएटल 





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