चिराग़ भी ढूँढता है अंधेरा
अपने वजूद के लिए
संकट न हो तो
अस्तित्व ही नहीं
किसी का किसी के लिए
दाना-पानी ही ज़रूरी होता
तो हम पेड़ होते
कभी हरे, कभी ख़ाली,
तो कभी पीले होते
न चलते, न उड़ते
एक ही जगह से चिपके रहते
न मिलते, न जुलते
बस सूरज तकते
बारिश पीते
कहीं आग लगे
तो कुछ बात बने
कहीं गाज गिरे
तो मदद करें
कोई झगड़ा हो
तो बीच-बचाव करें
किसी के दिल पे हाथ रखें
दिल से दिल की बात कहें
कुछ टूटे-फूटे
तो कुछ काम मिले
संकट नहीं
तो कुछ भी नहीं
चाहे
नेता हो
देवता हो
या कोई भी
राहुल उपाध्याय । 14 दिसम्बर 2021 । सिएटल
1 comments:
सत्य है।
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