Monday, December 6, 2021

आसमान को काटो तो खून नहीं

आसमान को काटो तो खून नहीं 


कितना बदनसीब है

आँसू बरसे

तो पोंछ नहीं सकता

धुआँ उठे 

तो आँखें बंद नहीं कर सकता

दुखी हो

तो उठ के कहीं जा नहीं सकता


भगवान किसी को कभी आसमान न बनाए

बिन बुलाए मेहमान की तरह 

इसे कोई भाव नहीं देता

मुँह पे दरवाज़ा मार देते हैं

जब चाहा देखा 

जब चाहा मुँह फेर लिया

और वो भी इसे कौन देखता है 

देखते हैं चाँद, सितारे 

और ईलॉन मस्क की 

जगमगाती सेटेलाइट्स की लड़ियाँ 


न कोई फ़ीचर्स है

न गुण

अस्तित्व होते हुए भी 

कोई अस्तित्व नहीं 

आज तक किसी ने इसे छुआ नहीं 

न इसने किसी को


कौन होगा जो

आजीवन अछूत ज़िन्दगी जीना चाहे

किसी के आलिंगन को तरस जाए


सॉलिटरी कन्फाईन्मेंट से भी बदतर ज़िन्दगी 

जेल में कम से कम दूसरों की ख़ुशी तो नहीं झेलनी पड़ती है 


ऊपर से दोष मढ़ने को सब तैयार 

आसमान टूट पड़ा 

कब और कैसे?

कोई बताए तो सही


भगवान किसी को कभी आसमान न बनाए


राहुल उपाध्याय । 6 दिसम्बर 2021 । सिएटल 







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2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

आतिश said...

संसार में बहुत कुछ है ऐसा जिनकी भाषा हम समझ नहीं पाते है
किन्तु उसके भाव को समझने का प्रयास जरूर कर सकते है।
सच में धरती के बारे में हम कितना कुछ कहते है , चांद सितारों और तो
और बादलों तक से दो चार हो लेते है । पर कभी आसमान के बारे में हम ज्यादा नहीं सोचते है वस उसे ऊंचाई तक ही सीमित कर तन्हा छोड़ देते हैं।

भाव से ओतपोत सृजन ! सुन्दर !