Thursday, December 9, 2021

घड़े सारे बेकार हुए

घड़े सारे बेकार हुए

घड़ियाँ अब तक चल रहीं

पटाखे सारे बंद हुए

फुलझड़ियाँ अब तक जल रहीं


लोहा और इस्पात का 

समाज में है मूल्य बहुत 

पंखुड़ी एक गुलाब की 

दिल में अब तक पल रही


काम का और काज का

होना अच्छी बात है 

प्यार से जो पुकार ले

उसकी कमी खल रही 


कोमलता का स्पर्श ही

होता औषध समान है 

दीन-दुखियों को देख लो

जिनकी साँसें सम्हल रहीं


तमाम उदाहरणों के बावजूद 

भाषा करती भेदभाव है

दिन उगे तो दिन चढ़े 

रात बिचारी ढल रही 


राहुल उपाध्याय । 9 दिसम्बर 2021 । सिएटल 








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