घड़े सारे बेकार हुए
घड़ियाँ अब तक चल रहीं
पटाखे सारे बंद हुए
फुलझड़ियाँ अब तक जल रहीं
लोहा और इस्पात का
समाज में है मूल्य बहुत
पंखुड़ी एक गुलाब की
दिल में अब तक पल रही
काम का और काज का
होना अच्छी बात है
प्यार से जो पुकार ले
उसकी कमी खल रही
कोमलता का स्पर्श ही
होता औषध समान है
दीन-दुखियों को देख लो
जिनकी साँसें सम्हल रहीं
तमाम उदाहरणों के बावजूद
भाषा करती भेदभाव है
दिन उगे तो दिन चढ़े
रात बिचारी ढल रही
राहुल उपाध्याय । 9 दिसम्बर 2021 । सिएटल
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