प्रात: विश्व कल्याण का
सबके कल्याण का
हम रोज़ सोचते हैं
भला ही सोचते हैं
न वेद, न गुरू, कभी
अनर्थ बोलते हैं
कहाँ हम अपना
अपना ही सोचते है
समर हो कभी कोई तो
हम छक्के छुड़ा दें
ताकत बड़ी,
शक्ति बड़ी
हम सबको बता दें
हिमालय से भी ऊँचा
है शौर्य हमारा
कभी फिर ना कहे कोई
ये यूँही बोलते हैं
मतलब नहीं कोई हमें
जहां के कलह से
अपने ही जहां में
हैं हम गंतव्य खोजते
हम अपने इरादों को
कभी ना भूलते
इक यही तो हैं जिनसे
हम ख़ुद को तोलते हैं
जब से हुआ है
यहाँ जन्म हमारा
तब से रहा यही
विश्वास हमारा
जीओ और जीने दो
यही हैं सोचते
और यही है सच भी
यही सच बोलते हैं
राहुल उपाध्याय । 27 दिसम्बर 2021 । सिएटल
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