मेरी वेहिंग स्केल
सच्ची होती
तो बाथरूम में न होती
मेरे दिल पर
इतना बोझ है
और ये है कि
रजिस्टर ही नहीं करती
हज़ार बार रोया
हज़ार बार तौला
इसके हिसाब से
न जी हल्का हुआ
समस्याएँ भारी से भारी आईं
और इसकी सुई
वहीं की वहीं रूकी रही
कभी ग़ुस्सा थूका
तो कभी भड़ास
तो कभी कविता निकाली
कभी आस छूटी
तो कभी ज़माने का दर्द ओढ़ लिया
और वजन है कि
इसमें न कोई फ़र्क़ आया
जब नाप नहीं सकती
तो बनी ही क्यूँ
यूँ इस तरह धोखा देना
अच्छा नहीं
कम से कम
मशीन से तो ये उम्मीद न थी
राहुल उपाध्याय । 3 दिसम्बर 2021 । सिएटल
1 comments:
बहुत खूब
Post a Comment