सब के सब कुछ ना कुछ हैं माँग रहे
जो नहीं उनका उनको माँग रहे
हाथ में है वो नहीं
साथ में है वो नहीं
ढूँढ रहे हैं हर घड़ी
पास में है जो नहीं
छोड़ कर अपना जहां
पा रहे हैं कुछ कहाँ
ये नहीं है वो नहीं
रोज़ रोते हैं यही
जाकर फिर कहीं
रोज़ रोते हैं यही
छोड़ कर अपना जहां
पा रहे हैं कुछ कहाँ
राहुल उपाध्याय । 11 जनवरी 2023 । गाँधीधाम
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