कोई आकर घर को फिर जाता नहीं
ठाठ हो सौ मगर सो पाता नहीं
छोड़ कर वो एक घर, एक माँ
साहिलों पे भी सुकूं पाता नहीं
जोड़ कर वो एक करोड़, दो करोड़
एक भी नम्बर पर रूक पाता नहीं
हम भी होंगे एक दिन कामयाब
कहनेवाला ख़ुद समझ पाता नहीं
आग है, हाथ जलेंगे, है जानता
फिर भी ख़ुद को रोक पाता नहीं
जान है, जानी है इक दिन, जाएगी
रोकने की ज़िद को रोक पाता नहीं
राहुल उपाध्याय । 9 जनवरी 2023 । द्वारका
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