Sunday, August 20, 2023

जहाँ हूँ मैं जन्नत अता हो रही है

तुम मेरे जीवन में आई नहीं हो 

जीवन में मेरे लाई गई हो 

मुझे क्या पता था कहाँ तुम हो ख़ुशियाँ 

सपनों में भी तुम आई नहीं हो 


करम देखता हूँ तो सोचता हूँ 

करम कहाँ ऐसे कि सुख भोगता हूँ 

मैं हूँ एक बच्चा जाता पाठशाला 

जिसे टॉफ़ी कोई दिलाई गई हो


सुबह शाम गीतों की दुनिया है ऐसी

कि कलकल करती नदिया हो वैसी 

मैं जितना भी चाहूँ उतना नहाऊँ 

गीतों की जैसे झड़ी लग गई हो


हमसफ़र न कोई, राह भी नहीं है 

जहाँ हूँ मैं जन्नत अता हो रही है 

अगर चलता भी तो हासिल न होता

जो दामन में मेरे तुम धर रही हो


राहुल उपाध्याय । 5 अप्रैल 2022 । सिएटल 

https://youtu.be/8LWkukjhI5g




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