अब तक है जो भी गुज़रा
गुज़रा नहीं वो अच्छा
अब हम क्या गाए
जब-जब भी मुड़ के देखा
कोई मिला न अपना
अब हम क्या गाए
जलता नहीं था कोई
जलने लगा ज़माना
पढ़-लिख के जबसे हमने
घर-बार है बसाया
जलते हैं आज जो भी
वो हैं नहीं पराए
अपनों की लार देखी
अपनों ने दूर भगाया
चाहा जिसे, न समझा
उसने भी हाथ हटाया
टुकड़ों में दफ़्न हुए हम
अपनों ने गुर दिखाए
लुट कर भी आज हम तो
चलते हैं राह अपनी
जिस-जिसने ठोकरें दीं
उनसे हैं राह बदली
तन्हाईयों से डर के
हमने न साथ निभाए
राहुल उपाध्याय । 1 अगस्त 2023 । सिएटल
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