Monday, January 27, 2025

एक को तड़पा रही हो

एक को तड़पा रही हो

एक को तरसा रही हो

साड़ी पहन कर क्यों 

ग़ज़ब ढा रही हो


कत्ल किया तो किया

वो ठीक था मगर

ये रोज़-रोज़ क्यों 

किए जा रही हो


एक तो चोरी 

ऊपर से सीनाज़ोरी 

ये नए उसूल 

क्यों अपना रही हो


मजबूरी है उनकी कि

तुम्हें छोड़ नहीं रहे हैं 

और तुम हो कि नग़मे 

सुर में गा रही हो


आशिक़ी की हवा

ऐसी लगी तुमको

के कान्हा की बंसी

तुम बजा रही हो 


राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2025 । सिएटल 





Saturday, January 25, 2025

इतवारी पहेली: 2025/01/26


इतवारी पहेली:


पोष्टिक है, पर कहे ### 

रोटी पे लगाऊँ? #? #, #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 2 फ़रवरी 2025 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 26 जनवरी 2025 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली: 2025/01/19



On Sun, Jan 19, 2025 at 2:32 PM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


लिखो सही, ## ##

जन्नत न दूर, है ### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 26 जनवरी 2025 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 19 जनवरी 2025 । सिएटल 




Thursday, January 23, 2025

तुम्हारी बेवफ़ाई से सीखा है मैंने

तुम्हारी बेवफ़ाई से सीखा है मैंने 

प्यार-वफ़ा सब तजा है मैंने 


ये दुनिया हसीन, रंगीन बहुत है

एक-एक रंग चखा है मैंने


जो तुमने किया, वो मैंने किया 

डंके की चोट पे किया है मैंने


चलो, हटो, तुम क्या समझोगे 

तुम्हें भी देख लिया है मैंने 


ज़िन्दगी मेरी कोई कहानी नहीं है 

एक-एक पल जी भर जिया है मैंने 


राहुल उपाध्याय । 23 जनवरी 2025 । सिएटल 




Monday, January 20, 2025

पहनाएँ मैंने

पहनाएँ मैंने, वो उतारे

ऐसे-कैसे वो दुलारे


चुनरी थी जो लाज तेरी

पड़ी थी वो सेज किनारे


मूक थे गहने, सर झुकाए

करते भी क्या वो बेचारे


कान की बाली, नाक की नथनी

सब थी चुप शर्म के मारे


भूल गई कैसे प्यार तू मेरा

लम्हे जो थे हमने गुज़ारे 

 

राहुल उपाध्याय । 20 जनवरी 2025 । सिएटल 


Sunday, January 19, 2025

इतवारी पहेली: 2025/01/19


इतवारी पहेली:


लिखो सही, ## ##

जन्नत न दूर, है ### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 26 जनवरी 2025 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 19 जनवरी 2025 । सिएटल 




आँखों में मेरी कोई नहीं है

आँखों में मेरी कोई नहीं है

साँसों में मेरी बसती है राधा


मिलती है तो जैसे हूर है वो

जाने पे उसके बचता हूँ आधा


न बंधन कोई, न अनुबंध कोई 

सीधा-सच्चा रिश्ता है सादा


वो गाहे-बगाहे मुझे याद करे

न चाहिए कुछ इससे ज़्यादा 


बेवफ़ाई का हक़ है सबको लेकिन 

मुझसे न करे वो फिर दोबारा 


राहुल उपाध्याय । 19 जनवरी 2025 । सिएटल 



Saturday, January 18, 2025

तेरा-मेरी रिश्ता है ऐसा

तेरा-मेरा रिश्ता है ऐसा

जैसे सूरज-चाँद का फेरा


तू न हो तो मैं भी नहीं 

तुझसे ही तो है नूर मेरा


मिल के भी हम मिलते कहाँ है

व्यास हमारा जैसे का तैसा


कटते-कटते ही कटेगी ज़िन्दगी 

चार दिनों का न ये रैन बसेरा 


कोई पूछे हमसे तो न समझे

के दर्द ने हमें कितना है घेरा


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 







वह रात-बेरात

वह रात-बेरात 

जग जाती है 

उठ जाती है

पढ़ लेती है मेरी कविता

कहने को कह देती है कि

भूख लगी थी

सो उठ गई

रात खाना नहीं खाया था

थक गई थी 


पहले वह मेरी कविताएँ पसंद करती थी

फिर मुझे पसंद करने लगी

अब शायद प्यार करती है 


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 


बेवफ़ा को तूने हुस्न दिया है

बेवफ़ा को तूने हुस्न दिया है 

बता तुझे क्या-क्या मिला है 


जन्नत और आँसू, ग़म और ख़ुशी 

इनके सिवा और क्या मिला है


दोज़ख़ में है तू, मैं हिज्र का मारा

बता तुझे और क्या मिला है 


न कविता ये मेरी, न ग़ज़ल है कोई

जो भी जोड़ा, बिखरा मिला है 


बेवफ़ा तू क़ातिल शातिर है इतनी 

के जो भी मरा, ज़िन्दा मिला है 


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 



Friday, January 17, 2025

जबसे 🤦‍♀️का मतलब

जबसे 🤦‍♀️ का 

मतलब समझ में आया

ज़िन्दगी गुलज़ार है

बागों में बहार है 


मैं अनाड़ी न होता

वह क़ायल न होती

उसकी हँसी पे मैं

घायल न होता 


राहुल उपाध्याय । 17 जनवरी 2025 । सिएटल 


Thursday, January 16, 2025

भूल गए हम भूलना क्या था

भूल गए हम भूलना क्या था

याद रहा बस याद दिलाना


चलते-फिरते मौसम हो तुम

रंग बदलता कौन है इतना


हाथों में जब हाथ नहीं हैं

कौन कहेगा है मेल हमारा


सात हैं दिन और सातों नामी

रातों का तुम नाम बताना


सागर गहरा, खारा पानी

बादल चंचल, प्यास बुझाता


राहुल उपाध्याय । 16 जनवरी 2025 । सिएटल 


Wednesday, January 15, 2025

मैं और मेरा फ़ोन

मैं और मेरा फ़ोन 

अक्सर ये बात करते हैं 

कि वाईफ़ाई न होता तो

क्या ही होता


न कोई कॉल ही आती

न कोई वीडियो में दिखता

तन्हा-तन्हा मैं मायूस होता


वो लड़की जो मुझे चाहती नहीं है

दस बार फ़ोन कर

सौ बार रोती

किससे पूछूँ

किसे बताऊँ 

हाल मैं अपना किसे सुनाऊँ 


ये रिश्ते सारे

वाईफ़ाई से क्यूँ हैं?

हैं तो कोई क़ीमत नहीं है 

हैं नहीं तो कोई ज़िंदगी नहीं है


राहुल उपाध्याय । 15 जनवरी 2025 । सिएटल 




अपना दिल बड़ा करें

अपना दिल बड़ा करें

दिल है कोई गुफ़ा नहीं 


कहने वाले कह रहे

आपसे मैं जुदा नहीं 


अजब है हाल आँख का

मिल के भी कुछ हुआ नहीं 


जल रहे हैं दीप भी

जलती फ़क़त शमा नहीं 


हाथ में जाम है तो क्या

जो करना है वो करता नहीं 


राहुल उपाध्याय । 15 जनवरी 2025 । सिएटल 


Tuesday, January 14, 2025

क्या बताए ये क्या ज़माना है

क्या बताए ये क्या ज़माना है

उसने दिल से मुझे निकाला है


मैं क्यूँ ख़ुशगवार हूँ इतना

हँसते-हँसते ये दिन बिताया है


मुझको उससे है प्यार क्यूँ आख़िर

बेवफ़ाई का जो पिटारा है


चलते-चलते ये मोड़ भी आया 

आईना ही न मुझको भाया है


किस ज़बां से कहूँ शुक्रिया उसको

टूटकर जिसने मुझको चाहा है


राहुल उपाध्याय । 14 जनवरी 2025 । सिएटल 






Monday, January 6, 2025

आज तुम्हारी कॉल बहुत मिस की

आज तुम्हारी कॉल बहुत मिस की

एक आदत सी बन गई है

तुम से कुछ कहने की

तुम से कुछ सुनने की


तुम्हारी 

चहकती हुई आवाज़ 

खिलखलाती हँसी में

पुट है

शरतचन्द्र की नायिका का

प्रेमचंद की सादगी का

मीरा की भक्ति का

महादेवी की छाया का


तुम तब क्यों नहीं मिली

जब फ़ाइनल्स के लिए जगना था

और लाख अलार्म्स 

और अड़ोस-पड़ोस के कई विद्यार्थी 

हार जाते थे


आज

न आँखों में नींद है

न दिल में चैन

और काम इतना पड़ा है

पर मन ही नहीं कर रहा है 

कुछ करने का


वक्त थम सा गया है 

न सुबह हुई 

न शाम हुई 

ज़िन्दगी यूँ ही तमाम हुई 


राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2025 । सिएटल 





ग़म भी तेरा मिले तो प्यारा है

ग़म भी तेरा मिले तो प्यारा है

चाँद-सितारों पे घर हमारा है


सारी दुनिया की तोहमतें सह कर

हमने अपना ये घर सँवारा है


तू ख़ुश-ख़ुश है आजकल जितनी

उतना ही ख़ुश ये जहान सारा है


हमको तुमसे है कब-कहाँ शिकवा

तू नहीं तो ये दिल बिचारा है


तेरे मिलने से है आज बेफ़िक्री 

मैंने सब-कुछ जो तुझपे वारा है


राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2025 । सिएटल 








Sunday, January 5, 2025

इतवारी पहेली: 2025/1/5


इतवारी पहेली:


हमने दर्ज़ी से कहा रेशम का एक ## ###

और उसने शुरू कर दी रेशमा की ### ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 12 जनवरी 2025 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 5 जनवरी 2024 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली: 2024/12/29



On Sun, Dec 29, 2024 at 10:25 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


नौकरी में नहीं पैसे, इसी में # ###

जिसे कहते हैं कम्प्यूटर वाले ## ##


(दूसरी पंक्ति का पहला शब्द अंग्रेज़ी का है जिसका अर्थ जुगाड़ भी समझा जा सकता है)


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 5 जनवरी 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 29 दिसम्बर 2024 । सिएटल 




Saturday, January 4, 2025

दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है

दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है

क्या हुआ जो ये दिल हारा है


आईना झूठ तो नहीं कहता

हमने ही रंग ये उतारा है


मिल गया कोई हमदम हमको

क्या कहें गुलसितां वो सारा है


हद से बढ़ कर कहाँ कोई चाहे

हम ही हैं जिनको इश्क़ ने मारा है


आदमी आज भी है आदम वो ही 

वस्ल की चाह ने कब सुधारा है


राहुल उपाध्याय । 4 जनवरी 2025 । सिएटल