दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है
क्या हुआ जो ये दिल हारा है
आईना झूठ तो नहीं कहता
हमने ही रंग ये उतारा है
मिल गया कोई हमदम हमको
क्या कहें गुलसितां वो सारा है
हद से बढ़ कर कहाँ कोई चाहे
हम ही हैं जिनको इश्क़ ने मारा है
आदमी आज भी है आदम वो ही
वस्ल की चाह ने कब सुधारा है
राहुल उपाध्याय । 4 जनवरी 2025 । सिएटल
1 comments:
नव वर्ष शुभ हो
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