Monday, January 6, 2025

आज तुम्हारी कॉल बहुत मिस की

आज तुम्हारी कॉल बहुत मिस की

एक आदत सी बन गई है

तुम से कुछ कहने की

तुम से कुछ सुनने की


तुम्हारी 

चहकती हुई आवाज़ 

खिलखलाती हँसी में

पुट है

शरतचन्द्र की नायिका का

प्रेमचंद की सादगी का

मीरा की भक्ति का

महादेवी की छाया का


तुम तब क्यों नहीं मिली

जब फ़ाइनल्स के लिए जगना था

और लाख अलार्म्स 

और अड़ोस-पड़ोस के कई विद्यार्थी 

हार जाते थे


आज

न आँखों में नींद है

न दिल में चैन

और काम इतना पड़ा है

पर मन ही नहीं कर रहा है 

कुछ करने का


वक्त थम सा गया है 

न सुबह हुई 

न शाम हुई 

ज़िन्दगी यूँ ही तमाम हुई 


राहुल उपाध्याय । 6 जनवरी 2025 । सिएटल 





इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: