तेरा-मेरा रिश्ता है ऐसा
जैसे सूरज-चाँद का फेरा
तू न हो तो मैं भी नहीं
तुझसे ही तो है नूर मेरा
मिल के भी हम मिलते कहाँ है
व्यास हमारा जैसे का तैसा
कटते-कटते ही कटेगी ज़िन्दगी
चार दिनों का न ये रैन बसेरा
कोई पूछे हमसे तो न समझे
के दर्द ने हमें कितना है घेरा
राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल
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