एक को तड़पा रही हो
एक को तरसा रही हो
साड़ी पहन कर क्यों
ग़ज़ब ढा रही हो
कत्ल किया तो किया
वो ठीक था मगर
ये रोज़-रोज़ क्यों
किए जा रही हो
एक तो चोरी
ऊपर से सीनाज़ोरी
ये नए उसूल
क्यों अपना रही हो
मजबूरी है उनकी कि
तुम्हें छोड़ नहीं रहे हैं
और तुम हो कि नग़मे
सुर में गा रही हो
आशिक़ी की हवा
ऐसी लगी तुमको
के कान्हा की बंसी
तुम बजा रही हो
राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2025 । सिएटल
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