Monday, January 20, 2025

पहनाएँ मैंने

पहनाएँ मैंने, वो उतारे

ऐसे-कैसे वो दुलारे


चुनरी थी जो लाज तेरी

पड़ी थी वो सेज किनारे


मूक थे गहने, सर झुकाए

करते भी क्या वो बेचारे


कान की बाली, नाक की नथनी

सब थी चुप शर्म के मारे


भूल गई कैसे प्यार तू मेरा

लम्हे जो थे हमने गुज़ारे 

 

राहुल उपाध्याय । 20 जनवरी 2025 । सिएटल 


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