बेवफ़ा को तूने हुस्न दिया है
बता तुझे क्या-क्या मिला है
जन्नत और आँसू, ग़म और ख़ुशी
इनके सिवा और क्या मिला है
दोज़ख़ में है तू, मैं हिज्र का मारा
बता तुझे और क्या मिला है
न कविता ये मेरी, न ग़ज़ल है कोई
जो भी जोड़ा, बिखरा मिला है
बेवफ़ा तू क़ातिल शातिर है इतनी
के जो भी मरा, ज़िन्दा मिला है
राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल
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