Thursday, October 3, 2013

मैं मर रहा हूँ, झर रहा हूँ

मैं
मर रहा हूँ
झर रहा हूँ
और
तुम हो कि
मैं तुम्हें सुंदर लग रहा हूँ


ये तुम्हारे सर से
रंगों से प्रेम का भूत
'गर नहीं उतरा
तो एक न एक दिन
ये तुम्हें ज़रूर ले डूबेगा


इतने पतझड़ बीत गए
लेकिन फिर भी
इस बार फिर
तुम कैमरा लटकाए
दाँत फाड़े खड़े हो
जैसे मुझपे फूल खिले हो


अजी 'फ़ूल' तो तुम हो
जो अब तक नहीं समझ सके
कि हरे का लाल होना कभी शुभ नहीं रहा
चाहे चौराहे के ट्रैफ़िक की लाईट हो
या प्लेटफ़ार्म पे लहराती झण्डी


हरा हरा ही रहे तो बेहतर है
खाली-पीली लाल-पीला होना किसे अच्छा लगता है?


3 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

बात तो सोचने की है - कि हमें झड़ते हुए पेड़, रंग बदलते हुए पत्ते - क्यों इतना भाते हैं? बहुत से पेड़ों के लिए यह समय शांत होकर, अपने पत्तों को त्याग कर, आने वाली सख्त सर्दी के लिए तैयार होने का होता है। लेकिन हम इस बदलाव को देखकर पेड़ के बारे में नहीं सोचते, सिर्फ रंगों की सुन्दरता पर ही ध्यान देते हैं।

हरा रंग सच में बहुत सुन्दर होता है! वो जीवन का प्रतीक है, बहार का रंग है, खुली वादियों और मेहंदी के पत्तों की याद दिलाता है।

और लाल रंग रुकने और पतझड़ से जुड़ा है...

ऐसा करेंगे कि अगले साल हरे टमाटर के पौधे की देख-भाल आप करना और जब टमाटर लाल हो जायें तो please मुझे दे देना, ok? :)