दाना दाना चुगता नहीं
बिन बीन साँप झूमता नहीं
बिना बिना कुछ होता नहीं
वीणा बिना सुर लगता नहीं
बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं
ज़िंदाँ है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं
ज़माने पे जमा ना रौब हमारा
रोब से ही रौब पड़ता नहीं
राहुल उपाध्याय | 26 अक्टूबर 2013 | सिएटल
बिन बीन साँप झूमता नहीं
बिना बिना कुछ होता नहीं
वीणा बिना सुर लगता नहीं
बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं
ज़िंदाँ है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं
ज़माने पे जमा ना रौब हमारा
रोब से ही रौब पड़ता नहीं
राहुल उपाध्याय | 26 अक्टूबर 2013 | सिएटल
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दाना = ज्ञानी; बीज
बिना = बगैर; आधार
ज़िंदाँ = जाईल
रोब = robe
दाना = ज्ञानी; बीज
बिना = बगैर; आधार
ज़िंदाँ = जाईल
रोब = robe
1 comments:
"बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं
ज़िंदा है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं"
Very nice! :)
इसमें Wordplay बहुत मुश्किल है - बिना glossary के समझ नहीं आता - जैसे "जिंदा" का meaning prison भी होता है, "दाना" का ज्ञानी, "बिन" का आधार - मुझे सिर्फ regular meaning ही पता था। कविता अच्छी है!
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