घड़ी भी चलते-चलते
थक जाती है
सुस्त हो जाती है
कभी
एक मिनट
तो कभी
दो मिनट
पीछे हो जाती है
और कभी-कभी तो
घंटों पीछे हो जाती है
लेकिन समय
फिर भी साथ नहीं छोड़ता
कभी भी घड़ी को
छ: घंटे से ज्यादा
पीछे नहीं होने देता
यहाँ तक कि
कई बार तो ऐसा भी आभास होता है
कि समय पीछे रह गया
और घड़ी आगे निकल गई
और फिर वो दोनों
एक पल के लिए ही सही
साथ हो जाते हैं
दोनों एक दूसरे के साथ
आगे-पीछे
चलते रहते हैं
जैसे
शाम को
किसी मोहल्ले में
निकले हो
अंकल-आंटी
टहलने को
9 जुलाई 2014
सिएटल । 513-341-6798
थक जाती है
सुस्त हो जाती है
कभी
एक मिनट
तो कभी
दो मिनट
पीछे हो जाती है
और कभी-कभी तो
घंटों पीछे हो जाती है
लेकिन समय
फिर भी साथ नहीं छोड़ता
कभी भी घड़ी को
छ: घंटे से ज्यादा
पीछे नहीं होने देता
यहाँ तक कि
कई बार तो ऐसा भी आभास होता है
कि समय पीछे रह गया
और घड़ी आगे निकल गई
और फिर वो दोनों
एक पल के लिए ही सही
साथ हो जाते हैं
दोनों एक दूसरे के साथ
आगे-पीछे
चलते रहते हैं
जैसे
शाम को
किसी मोहल्ले में
निकले हो
अंकल-आंटी
टहलने को
9 जुलाई 2014
सिएटल । 513-341-6798
1 comments:
बहुत प्यारी कविता है। समय और घड़ी के बंधन को पहली बार इस तरह सोचा। दोनों एक दुसरे के आस-पास ही रहते हैं - एक थोड़ा आगे तो दूसरा थोड़ा पीछे - मगर सदा साथ। उनका uncle-aunty के टहलने से comparison बहुत sweet लगा।
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