13 साल के
अंतराल में
बच्चे कितने
स्वतंत्र हो गएऔर हम कितने आसक्त
सूना-सूना घर है
सूनी-सूनी कार
आते-जाते राह में
लगे फूल भी रिक्त
हर
वक़्त का एक रंग है
हर
वक़्त का एक स्वाद
आज
अगर हम उदास है
तो
कल होगा उन्माद
पलक
झपकते ही गुज़र जाएंगे
चार
साल अकस्मात
गूँजेंगे
फिर कहकहे
होगा
फिर हर्ष-उल्लास
मानव-जीवन
की विसंगतियाँ ही
मानव
का सौभाग्य
माया-मोह
से जो वंचित है
वो
क्या जाने प्यार
20 अगस्त
2014
सिएटल
। 513-341-6798
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के-जी=kindergarten
1 comments:
"13 साल के अंतराल में
बच्चे कितने स्वतंत्र हो गए
और हम कितने आसक्त"
दिल को छूने वाली सच्ची कविता है! बहुत अच्छी लगी। इसमें बहुत सी profound बातें हैं जैसे:
"मानव-जीवन की विसंगतियाँ ही मानव का सौभाग्य" - बहुत सुन्दर!
"माया-मोह से जो वंचित है वो क्या जाने प्यार" - So true!
हिंदी के शब्द tough हैं - 'आसक्त' और 'विसंगतियाँ ' dictionary में ढूंढे! :)
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