वो चाँद था या बादल
कुछ समझ नहीं पाया मैं
दिन के उजाले में
अक्सर ऐसा धोखा हो जाता है
रात के अँधेरे में
सब साफ़ नज़र आता है
कौन देता है रोशनी
कौन दिलासा मन को
और कौन हवा के साथ
अपना रुख बदल लेता है
सब साफ़ नज़र आता है
6 अगस्त 2014
सिएटल | 513-341-6798
Wednesday, August 6, 2014
सब साफ़ नज़र आता है
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:22 PM
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2 comments:
"कौन देता है रोशनी
कौन दिलासा मन को
और कौन हवा के साथ
अपना रुख बदल लेता है
सब साफ़ नज़र आता है"
बात सच है - हम सोचते हैं कि हर चीज़ दिन में साफ़ दिखती है, रात में नहीं। मगर कुछ चीज़ें साफ़ तभी दिखती हैं जब आस-पास अँधेरा होता है। इसी तरह रिश्तों की सही पहचान भी तभी होती है जब दुखों की रात आती है। "चलो अच्छा ही हुआ हमने सच सुन लिया" - यही समझना चाहिए कि अँधेरा भी एक blessing ही है।
कविता की date "8/6/14" interesting है: 8 + 6 = 14 :)
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